बड़कागांव (हजारीबाग): झारखंड के हजारीबाग जिले में विकास और विरोध की एक नई जंग छिड़ गई है। बड़कागांव प्रखंड में प्रस्तावित गोंदुलपारा खनन परियोजना के आने से पहले जहाँ अदाणी फाउंडेशन अपने सामाजिक सरोकारों (CSR) के जरिए क्षेत्र की सूरत बदलने में जुटा है, वहीं कुछ स्थानीय ‘स्वार्थी तत्वों’ पर इस सकारात्मक बदलाव को रोकने के गंभीर आरोप लग रहे हैं।
शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक: फाउंडेशन की नई पहल
पिछले चार वर्षों में अदाणी फाउंडेशन ने बड़कागांव में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं:
- युवाओं को पंख: अग्निवीर, पुलिस और पैरामिलिट्री बलों में भर्ती के लिए निशुल्क प्रशिक्षण और कोचिंग।
- रोजगार के अवसर: जॉब फेयर के माध्यम से युवाओं को निजी क्षेत्र में नौकरियों से जोड़ना।
- स्वास्थ्य सेवा: नियमित मेडिकल कैंप, मुफ्त दवाइयां और एम्बुलेंस की सुविधा।
- महिला सशक्तिकरण: महिलाओं को आर्थिक सहायता देकर उन्हें स्वरोजगार के लिए आत्मनिर्भर बनाना।
विरोध या साजिश? समाज से निकालने की धमकी
हैरान करने वाली बात यह है कि इन विकास कार्यों का लाभ लेने वाले युवाओं और उनके परिवारों को निशाना बनाया जा रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार, एक छोटा समूह निजी हितों के कारण दुष्प्रचार कर रहा है।
आरोप है कि:
- नौकरी पा चुके युवाओं पर घर लौटने का दबाव बनाया जा रहा है।
- लाभार्थियों को समाज से बहिष्कृत (हुक्का-पानी बंद) करने की धमकियां दी जा रही हैं।
- विकास के नाम पर ग्रामीणों को भ्रमित किया जा रहा है।
अवैध धंधों पर चोट की आशंका
क्षेत्र में यह चर्चा आम है कि विरोध करने वाले अधिकांश लोग वही हैं जिनके हित अवैध कोयला खनन, बालू माफिया और अवैध ईंट-भट्ठों से जुड़े हैं। ग्रामीणों का मानना है कि यदि क्षेत्र में कानूनसम्मत औद्योगिक परियोजनाएं शुरू होती हैं, तो इन अवैध धंधों पर लगाम लग जाएगी। इसी डर से ये तत्व विकास की राह में बाधा बन रहे हैं।
प्रशासन से सुरक्षा की गुहार
बड़कागांव और हजारीबाग के जागरूक नागरिकों ने अब प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है। ग्रामीणों का स्पष्ट सवाल है— “यदि किसी गरीब युवा की प्रतिभा को मंच मिल रहा है, तो उसे प्रताड़ित क्यों किया जा रहा है?” लोगों ने मांग की है कि लाभार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाए ताकि क्षेत्र के युवा अपने सुनहरे भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकें।
निष्कर्ष:
यह मामला अब केवल एक माइनिंग प्रोजेक्ट का नहीं रह गया है, बल्कि यह एक बड़ी लड़ाई बन चुका है— विकास बनाम व्यक्तिगत स्वार्थ। अब देखना यह है कि प्रशासन इन ‘प्रभावशाली’ तत्वों पर क्या कार्रवाई करता है।



