गीता कोड़ा ने पीड़ित परिवार के आँसू पोंछे, बोलीं— “खनिज संपदा वाले जिले में पिता को शव के लिए एम्बुलेंस न मिलना शर्मनाक”

पश्चिमी सिंहभूम, 20 दिसंबर: चाईबासा सदर अस्पताल की संवेदनहीनता ने एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। एम्बुलेंस न मिलने के कारण एक आदिवासी पिता द्वारा अपनी चार माह की बच्ची के शव को थैले (झोले) में भरकर ले जाने की घटना पर पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने गहरा रोष व्यक्त किया है। शनिवार को गीता कोड़ा खुद नोवामुंडी प्रखंड के सुदूर जंगल क्षेत्र स्थित बालजोड़ी गांव पहुंचीं और शोकाकुल परिवार से मिलकर उन्हें ढांढस बंधाया।

सिस्टम की विफलता पर बरसीं पूर्व सांसद

​पीड़ित पिता डिंबा चंतोबा से मुलाकात के बाद गीता कोड़ा ने राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि यह महज एक घटना नहीं, बल्कि पूरे सरकारी तंत्र की विफलता का प्रमाण है।

​”यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस जिले की खनिज संपदा से सरकार को करोड़ों का राजस्व मिलता है, वहां के आदिवासियों को अपने बच्चों के शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस तक नसीब नहीं है। एक पिता को अपनी बच्ची का शव झोले में रखकर जंगल और पहाड़ी रास्तों से पैदल चलना पड़ा, इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता।” — गीता कोड़ा, पूर्व सांसद

स्वास्थ्य व्यवस्था के खोखले दावों की पोल खुली

​गीता कोड़ा ने जिले की स्वास्थ्य सेवाओं पर कई गंभीर सवाल खड़े किए:

  • कुपोषण और बदहाली: जिले में एक लाख से अधिक बच्चे कुपोषण की मार झेल रहे हैं, लेकिन सरकार केवल कागजी विकास के दावे कर रही है।
  • लगातार लापरवाही: इससे पहले भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन दोषियों पर कार्रवाई न होने से स्वास्थ्य कर्मियों के हौसले बुलंद हैं।
  • एम्बुलेंस की अनुपलब्धता: सुदूर ग्रामीण इलाकों में आपातकालीन सेवाओं का पूरी तरह अभाव है।

उच्चस्तरीय जांच और कार्रवाई की मांग

​पूर्व सांसद ने सरकार से मांग की है कि इस अमानवीय कृत्य के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों पर तत्काल कड़ी कार्रवाई की जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सुदूर गांवों में एम्बुलेंस सेवा और डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित नहीं की गई, तो भविष्य में ऐसी अमानवीय पीड़ा किसी और परिवार को न सहनी पड़े, इसके लिए वे बड़ा आंदोलन करेंगी।

क्या है पूरा मामला?

​बालजोड़ी गांव निवासी डिंबा चंतोबा अपनी चार माह की नवजात बच्ची के इलाज के लिए सदर अस्पताल चाईबासा आए थे। इलाज के दौरान बच्ची की मृत्यु हो गई। पिता ने एम्बुलेंस के लिए गुहार लगाई, लेकिन मदद न मिलने पर वह अपनी ममता और लाचारी को एक झोले में समेटकर बस और पैदल रास्तों से वापस अपने गांव लौटने को मजबूर हुआ।

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Author: haqeeqatnaama