खूंटी, 20 दिसंबर: जिले के महर्षि मेंही आश्रम शांतिपुरी और मलियादा (मुरहू) में शनिवार को आध्यात्मिक गुरु महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज की 106वीं जयंती श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जुटे सत्संगियों ने गुरुदेव के चित्र पर माल्यार्पण कर उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
दया और करुणा के सागर थे महर्षि संतसेवी
शांतिपुरी आश्रम में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए स्वामी लक्ष्मण जी महाराज ने कहा कि गुरुदेव का जीवन लोक कल्याण के लिए समर्पित था। वे दया और करुणा के साक्षात स्वरूप थे। उन्होंने समाज को शाकाहार, सदाचार और निष्काम भक्ति का जो मंत्र दिया है, वह आज के समय में और भी प्रासंगिक हो गया है।
माया-मोह और सत्संग का महत्व
मलियादा आश्रम में स्वामी वैष्णवानंद जी महाराज ने मनुष्य को माया-मोह के बंधनों के प्रति सचेत किया। उन्होंने एक मार्मिक उदाहरण (दृष्टांत) देते हुए समझाया:
”जिस तरह पेड़ कटने पर पक्षी उड़ जाते हैं लेकिन बंदर पेड़ को पकड़े रहने के कारण चोटिल होते हैं, ठीक वैसे ही मनुष्य संसार के मोह को नहीं छोड़ पाता और दुखों का भागी बनता है। सद्गुरु की भक्ति ही वह एकमात्र मार्ग है जो इन सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिला सकती है।”
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संगम
समारोह में केवल प्रवचन ही नहीं, बल्कि भक्ति संगीत की भी सरिता बही। लक्ष्मण मुंडा और मागो मुंडा ने मुंडारी भाषा में सुंदर भजनों की प्रस्तुति दी, जिसने उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।
कार्यक्रम की मुख्य बातें:
- महापुरुषों का मार्गदर्शन: लोदरो लाहिरी बाबा, मुरलीधर बाबा और दिगंबर बाबा ने गुरुदेव के जीवन संघर्षों और उनके उपदेशों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
- प्रमुख उपस्थिति: डॉ. डीएन तिवारी, संजय सत्संगी, मुचीराय मुंडा, सगुन दास, राम हरि साव और डॉ. रमेशचंद्र वर्मा सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।
- संदेश: सत्संग और गुरु की शरण में जाने से ही जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान संभव है।
आश्रम परिसर दिन भर गुरुदेव के जयकारों और आध्यात्मिक चर्चाओं से गुंजायमान रहा, जिससे पूरे क्षेत्र में भक्तिमय वातावरण बना रहा।



