रांची, 24 दिसंबर। झारखंड कैबिनेट द्वारा बहुप्रतीक्षित पेसा (PESA) नियमावली को मंजूरी दिए जाने के बाद राज्य में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने इसे राज्य के आदिवासी और मूलवासी समाज की अस्मिता और अधिकारों की एक बड़ी जीत करार दिया है। पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि यह केवल एक कानून नहीं, बल्कि जल-जंगल-जमीन और पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण का सबसे मजबूत ढाल है।
लोकतंत्र की जननी है आदिवासी व्यवस्था: सुप्रियो भट्टाचार्य
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए भट्टाचार्य ने भाजपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि जहाँ एक ओर केंद्र सरकार संख्या बल के आधार पर लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर अधिनायकवादी व्यवस्था थोपने की कोशिश कर रही है, वहीं पेसा कानून ग्राम सभा को सर्वोपरि बनाकर लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करता है।
”मानव इतिहास की पहली लोकतांत्रिक व्यवस्था आदिवासी समाज की सामुदायिकता से शुरू हुई थी। पेसा कानून उसी सामूहिक निर्णय लेने की शक्ति को पुनर्जीवित करता है।”
— सुप्रियो भट्टाचार्य, महासचिव, झामुमो
कॉरपोरेट दखल पर लगेगी लगाम
भट्टाचार्य ने अरावली पर्वत क्षेत्र का उदाहरण देते हुए चेतावनी दी कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट घरानों के हवाले किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पेसा कानून के प्रभावी होने से झारखंड में किसी भी परियोजना के लिए ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होगी, जो ‘समता जजमेंट’ की मूल भावना को सुरक्षित रखेगी।
पिछली सरकारों पर दागे तीखे सवाल
झामुमो नेता ने पूर्व की सरकारों को आड़े हाथों लेते हुए सवाल किया कि आखिर बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास जैसे नेताओं के कार्यकाल में इसे लागू क्यों नहीं किया गया? उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सराहना करते हुए कहा कि सरकार ने सत्ता में वापसी के एक वर्ष के भीतर ही इस नियमावली को लागू कर अपनी प्रतिबद्धता साबित कर दी है।
पेसा नियमावली के प्रमुख प्रभाव:
- ग्राम सभा की शक्ति: अब विकास योजनाओं, शिक्षा और रोजगार की प्राथमिकताएं स्थानीय ग्राम सभा द्वारा तय की जाएंगी।
- अफसरशाही पर नियंत्रण: प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में अब ग्राम सभा का हस्तक्षेप बढ़ेगा, जिससे नौकरशाही की मनमानी पर रोक लगेगी।
- संसाधनों का संरक्षण: आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (SIA) को मजबूती मिलेगी।
निष्कर्ष
झामुमो ने इसे झारखंड के सामाजिक और सांस्कृतिक भविष्य के लिए एक ‘मील का पत्थर’ बताया है। पार्टी का मानना है कि यह कदम न केवल आदिवासियों की पहचान को सुरक्षित करेगा, बल्कि राज्य के विकास में जनभागीदारी को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।
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