सीएजी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा: झारखंड में लघु खनिज प्रबंधन में भारी अनियमितताएं, ₹200 करोड़ से अधिक का नुकसान

रांची, 11 दिसंबर (हि.स.)। झारखंड की प्रधान महालेखाकार इन्दु अग्रवाल ने गुरुवार को प्रेस वार्ता में सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के आधार पर राज्य में लघु खनिजों के प्रबंधन में हुई गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया है। रिपोर्ट में बालू घाटों के संचालन, पत्थर खदानों के पट्टों की स्वीकृति और नीलामी में भारी गड़बड़ियां पाई गई हैं, जिससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है।

​अग्रवाल ने बताया कि अनियमितताओं के चलते राज्य का राजस्व 2017-18 के ₹1,082 करोड़ से घटकर 2021-22 में ₹697 करोड़ रह गया।

प्रमुख अनियमितताएं और राजस्व हानि

1. बालू घाट संचालन में बड़ी चूक (₹70.92 करोड़ का नुकसान)

  • ​सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड राज्य खनिज विकास निगम (JSMDC) को सौंपे गए 608 बालू घाटों में से केवल 21 का ही संचालन किया जा सका।
  • 368 घाट बंद: माइनिंग प्लान और पर्यावरणीय स्वीकृतियों में देरी के कारण 9,782 एकड़ क्षेत्र के 368 घाट वर्षों तक बंद पड़े रहे।
  • निष्क्रियता का परिणाम: इस निष्क्रियता के कारण सरकार को ₹70.92 करोड़ के राजस्व से हाथ धोना पड़ा। इसके अलावा, 2019-22 के दौरान बालू से संबंधित स्वामित्व राशि में ₹82 लाख से ₹7.61 करोड़ तक की गड़बड़ियां भी पाई गईं।

2. अवैध खनन और जुर्माना वसूली में प्रशासनिक ढिलाई

  • तय सीमा से अधिक खनन: चार जिलों के 26 पट्टाधारियों ने तय सीमा से 33.21 लाख घनमीटर अधिक लघु खनिजों का खनन किया।
  • राजस्व का नुकसान: इस पर लगने वाला जुर्माना ₹205.21 करोड़ बनता था, लेकिन जिला खनन कार्यालयों ने न तो जुर्माना लगाया और न ही इसकी वसूली की।
  • ​इसी तरह, 30 अन्य मामलों में ₹27.53 करोड़ और 15 मामलों में ₹2.23 करोड़ की वसूली नहीं की गई।

3. पट्टा स्वीकृति में गंभीर अनियमितता

  • साहिबगंज में क्षेत्राधिकार का उल्लंघन: साहिबगंज में उपायुक्त ने अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक 4.74 हेक्टेयर भूमि पर पट्टा स्वीकृत कर दिया, जिसे ई-नीलामी के लिए जाना चाहिए था।
  • वन भूमि का दुरुपयोग: चतरा और पलामू जिलों में वन भूमि को ‘गैर-मजरुआ परती’ दिखाकर आठ पट्टे दे दिए गए। यह सीधा वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन है।
  • धीमी नीलामी: नीलामी प्रक्रिया बेहद धीमी रही और सिर्फ 3.77 प्रतिशत ब्लॉकों की ही नीलामी हो सकी।

4. पर्यावरणीय स्वीकृति में खामियां

  • जाली प्रमाण-पत्र: रिपोर्ट में पाया गया कि आवेदकों ने जाली प्रमाण-पत्र लगाकर बड़ी भूमि को छोटे श्रेणी में दिखाया, जिससे उन्हें गलत वर्ग में पर्यावरणीय मंजूरी मिल गई।
  • अवैध उत्खनन: इन गलत मंजूरियों के आधार पर पंजीकृत पट्टाधारियों ने वर्ष 2022-23 और 2023-24 के बीच 6.35 लाख घनमीटर पत्थर का अवैध उत्खनन किया, जिसका मूल्य लगभग ₹19.88 करोड़ है।
  • पर्यावरण उपायों की अनदेखी: अधिकांश खदानों में सुरक्षा अवरोध, पौधारोपण, वायु-ध्वनि निगरानी जैसे पर्यावरणीय उपायों को नजरअंदाज किया गया।

​उल्लेखनीय है कि इस सीएजी रिपोर्ट को गुरुवार को वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सदन के पटल पर रखा था।

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Author: haqeeqatnaama