रामगढ़ | 24 दिसंबर, 2025
अमन साहू गैंग के सरगना और कुख्यात अपराधी मयंक सिंह उर्फ सुनील मीणा को छत्तीसगढ़ पुलिस ने 5 दिनों की ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया है। इस पूरी कार्रवाई के दौरान रामगढ़ पुलिस और एटीएस की सक्रियता इतनी तेज रही कि मयंक सिंह के वकीलों को अदालत में आपत्ति दर्ज कराने का समय तक नहीं मिल सका।
मुख्य घटनाक्रम: क्यों हुई गिरफ्तारी?
- आरोप: रेलवे साइडिंग के ठेकेदार से रंगदारी और गुर्गों के जरिए गोलीबारी।
- साजिश: जेल के भीतर से पतरातू और बरकाकाना के ठेकेदारों की ‘हिट लिस्ट’ तैयार करने का खुलासा।
- पुलिस एक्शन: रामगढ़ व्यवहार न्यायालय से अनुमति मिलते ही रातों-रात आरोपी को छत्तीसगढ़ रवाना किया गया।
जेल की सलाखों के पीछे से चल रहा था ‘रंगदारी का सिंडिकेट’
पुलिस सूत्रों के अनुसार, मयंक सिंह जेल में रहते हुए भी बाहरी दुनिया में दहशत फैलाने की फिराक में था। वह पतरातू प्रखंड के भुरकुंडा और भदानीनगर जैसे औद्योगिक इलाकों के बड़े ठेकेदारों को निशाना बनाने की साजिश रच रहा था। पुलिस की सतर्कता ने न केवल इस साजिश को नाकाम किया, बल्कि छत्तीसगढ़ की रेल अदालत के आदेश पर उसे रिमांड पर भेजने की प्रक्रिया भी पूरी की।
कानूनी पेंच: वकीलों ने पुलिस पर उठाए सवाल
इस हाई-प्रोफाइल मामले में कानूनी मोड़ तब आया जब मयंक सिंह के वकील हेमंत सिकरवार ने रायपुर उच्च न्यायालय में पुलिस और जेल प्रशासन की कार्यशैली को चुनौती दी।
अधिवक्ता के मुख्य आरोप:
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- जेल मैनुअल का उल्लंघन: 23 दिसंबर की रात को आनन-फानन में मयंक को छत्तीसगढ़ भेजना नियमों के खिलाफ।
- सूचना का अभाव: वकीलों को रिमांड याचिका पर बहस करने का अवसर नहीं दिया गया।
- गोपनीयता: पुलिस की पूरी कार्रवाई को जानबूझकर बेहद गुप्त रखा गया।
वर्तमान स्थिति: रायपुर उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब सबकी नजरें कोर्ट के अगले आदेश पर टिकी हैं।
प्रोफेशनल क्राइम रिपोर्टिंग के लिए कुछ टिप्स:
अगर आप एक पेशेवर रिपोर्टर के तौर पर लिख रहे हैं, तो ये बदलाव लेख में जान फूंक देंगे:
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- सटीक कानूनी शब्दावली: “इकबालिया बयान” (Confessional statement), “ट्रांजिट रिमांड” (Transit Remand) और “जेल मैनुअल” जैसे शब्दों का सही प्रयोग करें।
- सस्पेंस बनाए रखें: खबर की शुरुआत ‘इम्पैक्टफुल’ शब्दों से करें जैसे— “पुलिस की बिजली सी फुर्ती” या “खामोशी से दी गई दबिश”।
- संतुलन: हमेशा पुलिस का पक्ष और वकील (डिफेंस) का पक्ष अलग-अलग पैराग्राफ में दें, ताकि खबर निष्पक्ष लगे।



